New Delhi: Famous writer and Sahitya Akademi Youth Award winner Nilotpal Mrinal wrote a protracted word on his Facebook account, alleging copyright infringement by The Viral Fever (TVF). He claimed that TVF new net collection Aspirants, primarily based on college students making ready for IAS exams, has been copied from his well-known book Dark Horse (2015 launch).
Author Nilotpal Mrinal took to Facebook and wrote in Hindi: डार्क हॉर्स के लेखक नीलोत्पल मृणाल की Tvf के अरुणाभ जी से हुई ये मुलाकात एक अच्छे अंजाम तक पहुँचती तो कितना अच्छा था।
कितनी सुन्दर मुलाकात थी। कितनी सहज मुलाकात” बॉस डार्क हॉर्स पढ़ के देखियेगा न,उसपे कुछ बन सकता है।” और बन ही गया और बन गया मैं भी…
खैर, मान भी लिजिए कि पूरी कहानी नहीं चोरी की, और मैं ये कहूँ कि डार्क हॉर्स की करीब 70 फीसदी कहानी अब भी किताब में बंद है।उसकी चोरी नहीं हुई है। “एस्पिरेंट” ने बस 30 फीसदी ही माल लिया।
(ये अनुपात गणित का नहीं।साहित्यिक अंदाजा है) लेकिन ये लेन-देन एक बातचीत या दोस्ताना पहल के साथ हो जाती तो कुछ बिगड़ नहीं जाता। पर बम्बई की चमक,चैनल की धमक और unअकेडमी की अकूत दौलत के लिये ये कोई परवाह वाली बात ही नहीं थी…सबको लगा होगा” यार नीलोत्पल जैसे लेखक रोज आते-जाते हैं। अभी सत्य व्यास की बनारस टॉकिज भी तो चोरी हुई,क्या उखाड़ लिया इनलोगों ने?”
सही बात, हम देर से जगे। हिन्दी का कस्बाई कलम सोचते-समझते देर तो कर ही देता है।
कैसे लड़ें?कितना लड़ें? हार होगी कि जीत? ये सब नफा नुकसान और संसाधन की सीमा देखते-समझते देर तो हो ही जाती है।
तो इस बार ये सब आकलन कर हम सब तैयार हैं।
लड़ेंगे, कानून से ही तो लड़ना है..लड़ेंगे।
ये लड़ाई लड़ेगा तो डार्क हॉर्स का लेखक,हारेगा तो डार्क हॉर्स का लेखक, लेकिन जीत गया तो जीतेगा वह हर संघर्ष करता लेखक जिसकी कितनी चोरी करी गई कहानियां “हिट फिल्म/सीरीज” के हो-हल्ला में दब के घुंट के मर गई।
मैं उस घुंटन से इंकार करता हूं।और मैं ही नहीं,मेरी पीढ़ी का हर लेखक अब घुंटने से,घुटने टेकने से इंकार करता है।
अब रही बात, क्या सच में “एस्पिरेंट” की सीरीज डार्क हॉर्स की कॉपी है?
तो हाँ है।
और ये दावा हवा-हवाई नहीं है।सीरीज देख के,सोच के,खोज के तब ये दावा है।
अगर किसी को ये संदेह है कि ये कॉपी कैसे है तो ये बात पॉइंट-टू-पॉइंट एक-एक कर लिख के ही कानून की शरण में जाऊंगा।
मेरा मुर्गा चोरी हुआ है,आप कड़ाही में बना चिकन मसाला दिखा कर ये कहते हुए हुए “आप अपने मुर्गा का शक्ल दिखाईये,फोटो दिखाईये और मिला के देखिये कि क्या इस चिकन मसाला से उसकी शक्ल मिलती है?”
इस भोले तर्क से आप मुर्गे की चोरी नहीं झूठला सकते न साहब।
तब तो दुनिया की हर कहानी को ये बता कि ” कुछ चीज तो मिलता ही है।हर कहानी में होता है।” ये सब बता तो फिर कहानी के मूल,उसकी आत्मा की चोरी,उसके मर्म की चोरी जैसे दावे ही खत्म कर देंगे आप कॉपीराइट कानून से?
हमारा जो भी दावा है वो,कानून और कॉपीराइट के विषेशज्ञों से राय और तर्क ले के ही है।
कॉपीराइट में ये नहीं होता कि कोई कहानी पंक्ति ब पंक्ति और वाक्य-वाक्य चोरी हो,दृश्य-दृश्य चोरी हो,संवाद दर संवाद चोरी हो तभी चोरी मानी जायेगी।
ये भी गौर करने वाली बात है कि “डार्क हॉर्स(2015) में छपने से पहले तक आपके-हमारे मोबाईल में upsc से संबंधीत कितने मीम आते थे? यू टयूब पे कितने वीडियो बनते थे upsc और मुखर्जी नगर/ओल्ड राजेंद्र नगर पर ? कितने पेज थे fb पे? इंस्टा पे?
इस साफ-साफ सार्वजनिक बात को मान लेने में कोई ईगो नहीं लाना चाहिए कि हिन्दी पट्टी की दुनिया में upsc के छात्रों की कहानी और उसके संघर्ष को डार्क हॉर्स के ही लाखों पाठकों ने बहस और गॉसिप का विषय बनाया।
ये किताब ही पहली किताब थी हिन्दी की,जिसने मुम्बई के गलियारे जा upsc के छात्रों की जिंदगी को पर्दे का कच्चा माल बताया।निर्माताओं का भी ध्यान खिंचा।लोगों को बताया कि ” इस विषय पे फिल्म/सीरीज बने,ये विषय अनछुआ सा है।”…..
और ये सब बातें हवा-हवाई नहीं है। सार्वजनिक मंच है,तारीख दर तारीख जाँच कर लिजिए।
पूछिये इन फिल्म/सीरीज वालों और upsc के छात्रों की जिंदगी पे किताब लिखने वाले स्क्रिप्ट राईटर भाई लोग से कि ” 2015 के पहले,डार्क हॉर्स के पहले” कहाँ थे? क्या तब मुखर्जी नगर नहीं था? या तब इन छात्रों के जीवन में संघर्ष नहीं था?
था…था….था…तब भी था..पर किसी कलम या कैमरे की नजर नहीं थी। वो आँख मिली “डार्क हॉर्स” से..चाहे उसका लेखक किसी को बेहद नापसंद आने वाला व्यक्ति” नीलोत्पल मृणाल” ही क्यों नहीं हो।
अब ये सच है कि ये संयोगवश ही हुआ,पर हुआ तो।
खैर अब लड़ेंगे। मैं डार्क हॉर्स के उन लाखों पाठकों से,आप सब उन दोस्तों से जिन्होंने मुझे एक पहचान दी,डार्क हॉर्स को एक मुकाम दिया…आप सब से हाथ जोड़ इस लड़ाई में सहयोग मांगता रहूँगा।
ये वक़्त तो कोरोना जैसी बहुत बड़ी विपदा से लड़ने का था,लड़ भी रहे थे आप-हम सब। पर इसी विपदा को अवसर बना tvf ने किसी कहानी की आत्मा चोरी कर अपने लिये अवसर निकाला है तो यही सही..एक लड़ाई इनसे भी चलेगी।
स्वागत है unअकेडमी और tvf का….मैदान में मिलते हैं। मेरा एक सपना मारा गया है,मेरे सपने की चोरी हुई है..अंजाम नहीं जानता..बस लड़ेंगे तो जरूर।जय हो।
नोट- *मेरी किताब अप्रैल 2015 में प्रकाशित है।
* पोस्ट में अरुणाभ भाई के साथ तस्वीर और मुलाकात का जिक्र इसलिये कि आप जान पायें कि निर्माता बतौर डार्क हॉर्स का लेखक ,मुझे पहचानते हैं,किताब पर फिल्म बन सकने की मेरी रूचि या इच्छा से अवगत थे।
किताब इसी वक्त पढ़ी गई होगी,जरुरी नहीं।किताब तो 2015 से प्रकाशित है।
He shared an in depth account of how his work and idea has been utilized in TVF Aspirants and due credit score is lacking. Nilotpal claimed that the makers of this net collection did not take his permission, subsequently he might be taking a authorized route quickly.
This is just not the primary time that such a declare has been made by an writer. Earlier, Chetan Bhagat has accused makers of the movie ‘3 Idiots’, primarily based on his best-selling debut novel ‘Five Point Someone’, of not giving him credit score for the story.
Chetan Bhagat had posted a message on his Twitter account accusing the ‘3 Idiots’ crew of “negating his contribution.” The writer had offered the rights of his book to producer Vidhu Vinod Chopra.
However, the makers denied it. Director Rajkumar Hirani was quoted as saying, “Bhagat has signed a contract with us, giving us the right to modify or change the story. The contract also clearly states that credit shall be given to him in the rolling credits of the film, which was duly done.”