India Pakistan Partition Heart Touching Story Two Brother Met Each Other After Long Years Wept Bitterly | India-Pakistan Partition: सालों बाद जब गले मिले दो जुदा भाई, फूट-फूटकर रोए, बोले

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India Pakistan Partition Heart Touching Story Two Brother Met Each Other After Long Years Wept Bitterly | India-Pakistan Partition: सालों बाद जब गले मिले दो जुदा भाई, फूट-फूटकर रोए, बोले


India Pakistan Partition: भारत और पाकिस्तान साल 1947 में विभाजन के बाद दो टुकड़ों में बंट गए और इसी विभाजन में छह महीने के सिका सिंह भारत में रह गए. उनके बड़े भाई सादिक खान पाकिस्तान भाग गए. दोनों मुल्कों के अलग होने पर दो भाई भी अलग हो गए लेकिन सालों बाद जब दोनों मिले तो दोनों की आंखों से लगातार आंसू बहते रहे और दोनों ने गले लगकर सालों के बिछड़न की तपिश को दूर किया.  

सिख मजदूर सिका सिंह ने बताया कि जब वे सिर्फ छह महीने के थे तब वे और उनके बड़े भाई सादिक खान अलग हो गए थे क्योंकि देश दो टुकड़ों में बंट गया था. इस साल विभाजन की 75वीं वर्षगांठ के दौरान कई लोगों के लिए खुशी की सौगात लेकर आया. जब आज से 75 साल पहले सांप्रदायिक रक्तपात ने संभवतः दस लाख से अधिक लोगों को मार डाला था, सिका जैसे परिवारों को अलग कर दो स्वतंत्र राष्ट्रों, पाकिस्तान और भारत का निर्माण किया गया था.

सिका की दर्दनाक कहानी, भाई से मिलकर भूल गए गम

सिका के पिता और बहन इसी विभाजन को लेकर हुए सांप्रदायिक नरसंहारों में मारे गए थे लेकिन सादिक, जो सिर्फ 10 साल का था, पाकिस्तान भाग गया था.
सिका ने बताया कि”मेरी माँ इस आघात को सहन नहीं कर सकी और नदी में कूद गई और आत्महत्या कर ली.” सिका सिंह ने बताया कि”मुझे ग्रामीणों और कुछ रिश्तेदारों की दया पर छोड़ दिया गया जिन्होंने मुझे पाला.”

बचपन में सिका को अपने भाई के बारे में पता चला तो वो उनके बारे में जानने के लिए तरस रहा था, जो उसके परिवार का एकमात्र जीवित सदस्य था लेकिन वह लाचार था. तीन साल पहले एक डॉक्टर ने उनकी मदद की और तब वह अपने भाई के बारे में जान सके. डॉक्टर ने पाकिस्तान में कई फोन कॉल किए और फिर

उनकी बात पाकिस्तानी YouTuber नासिर ढिल्लों से हुई जिन्होंने सिका और सादिक की मुलाकात कराने की ठानी. 
सिका और सादिक दोनों भाई आखिरकार जनवरी में करतारपुर कॉरिडोर में मिले थे, जो एक दुर्लभ, वीजा-मुक्त क्रॉसिंग है और भारतीय सिख तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान में एक मंदिर में जाने की अनुमति देता है.

करतारपुर गलियारे ने कई बिछड़े लोगों को मिलवाया

2019 में खोला गया ये करतारपुर गलियारा, आज दोनों देशों के बीच जारी शत्रुता के बावजूद, अलग-अलग परिवारों के लिए एकता और सुलह का प्रतीक बन गया है. सिका ने तब बताया “मैं भारत से हूं और वह पाकिस्तान से है लेकिन हमें एक-दूसरे के लिए बहुत प्यार करते हैं,” सिका ने एक फ़्रेमयुक्त पारिवारिक तस्वीर को पकड़े हुए कहा था.

उन्होने बताया “जब हम पहली बार मिले तो हम गले मिले और बहुत रोए. दोनों भाईयों  ने कहा हमारे देश लड़ते रह सकते हैं लेकिन हमें भारत-पाकिस्तान की राजनीति की परवाह नहीं है.”

यू-ट्यूबर ढिल्लों लोगों की करते हैं मदद

पाकिस्तानी किसान और रियल एस्टेट एजेंट 38 वर्षीय, ढिल्लों, जो एक मुस्लिम हैं उनका कहना है कि उसने अपने YouTube चैनल के माध्यम से अपने दोस्त भूपिंदर सिंह, एक पाकिस्तानी सिख के साथ लगभग 300 परिवारों को फिर से जोड़ने में मदद की है.

ढिल्लों ने एएफपी को बताया “यह मेरी आय का स्रोत नहीं है, यह मेरा आंतरिक स्नेह और जुनून है ” उन्होंने कहा कि “मुझे ऐसा लगता है कि ये कहानियां मेरी अपनी कहानियां हैं या मेरे दादा-दादी की कहानियां हैं, इसलिए इन बड़ों की मदद करने से मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपने दादा-दादी की इच्छाओं को पूरा कर रहा हूं.” उन्होंने कहा कि वह खान बंधुओं से बहुत प्रभावित हुए और उनके पुनर्मिलन को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया.

उन्होंने पाकिस्तान के फैसलाबाद में एएफपी को बताया, “जब वे करतारपुर में फिर से मिले, तो न केवल मैं बल्कि परिसर में लगभग 600 लोग भाइयों को फिर से देखकर बहुत रो पड़े थे.”

ऐसी है विभाजन की भयावह कहानी

माना जाता है कि जब 1947 में ब्रिटिश प्रशासकों ने उनके साम्राज्य को खत्म करना शुरू किया तो लाखों हिंदू, सिख और मुसलमान भाग गए थे. जानकारी के मुताबिक उस नरसंहार में एक मिलियन लोगों के मारे जाने का अनुमान है, हालांकि कुछ लोगों ने इस आंकड़े को दोगुना बताया है. तब हिंदू और सिख भारत भाग गए, जबकि मुसलमान विपरीत दिशा में भाग गए थे. हजारों महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया और दो नए राष्ट्रों के बीच शरणार्थियों को ले जाने वाली ट्रेनें लाशों से भरी हुई आईं थीं.

विभाजन की विरासत आज तक कायम है, जिसके परिणामस्वरूप परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच उनके सांस्कृतिक और भाषाई संबंधों के बावजूद कड़वी प्रतिद्वंद्विता हुई है.हालांकि, प्रेम किसी सीमाओं में नहीं बंधा है.

बलदेव-गुरमुख सिंह को मिली खोई बहन

ऐसे ही सिख बलदेव और गुरमुख सिंह के लिए, उनकी सौतेली बहन मुमताज बीबी को गले लगाने में कोई झिझक नहीं थी, जिसे पाकिस्तान में मुस्लिम बनाया गया था.
एक शिशु के रूप में, वह दंगों के दौरान अपनी मृत मां के साथ पाई गई थी और उसे एक मुस्लिम जोड़े ने गोद लिया था. उनके पिता ने अपनी पत्नी और बेटी को मरा हुआ मानकर अपनी पत्नी की बहन से शादी कर ली थी.

ढिल्लों के चैनल और पाकिस्तान के एक दुकानदार के फोन कॉल से सिंह बंधुओं को पता चला कि उनकी बहन जीवित है. भाई-बहन आखिरकार इस साल की शुरुआत में करतारपुर कॉरिडोर में मिले, अपने जीवन में पहली बार एक-दूसरे को देखने के बाद तो मानों खुशी का ठिकाना नहीं था. 65 वर्षीय बलदेव सिंह ने एएफपी को बताया, “जब हमने उसे पहली बार देखा तो हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.” उन्होंने कहा “तो क्या हुआ अगर हमारी बहन मुस्लिम है? उसकी रगों में वही खून बहता है जो हमारी रगो में है.”

बहन-भाई का प्यार सरहदों में बंधा नहीं

मुमताज बीबी भी अपने भाईयों से मिलकर उतनी ही खुश थीं, जब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के शेखूपुरा शहर में एएफपी की एक टीम उनसे मिलने आई तो उन्होने कहा “जब मैंने (अपने भाइयों के बारे में) सुना, तो मुझे लगा कि भगवान ने मेरे लिए अपना आशीर्वाद भेजा है और यह ईश्वर की इच्छा है और हर किसी को उसकी इच्छा के आगे झुकना पड़ता है और फिर उसने मुझे आशीर्वाद दिया, और मैंने अपने भाइयों को पाया.”

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